7th Day of Navratri महत्व, आराधना, पूजा विधि

Navratri हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भारत में खूबसूरति और उत्सव के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार आध्यात्मिकता और पौराणिक कथाओं के माध्यम से मां दुर्गा की महत्वपूर्ण आराधना का आयोजन करता है और भक्तों को उनकी शक्ति और क्रियाशीलता का महत्व याद दिलाता है। नवरात्रि के इस सातवें दिन, जिसे सप्तमी कहा जाता है, मां कालरात्रि की पूजा की जाती है, जिसका महत्व बहुत अधिक होता है। इस लेख में, हम नवरात्रि के सप्तमी दिन के महत्व और पूजा का विवरण प्रस्तुत करेंगे।

Navratri का महत्व:

नवरात्रि का अर्थ होता है ‘नौ रातें’ और यह त्योहार मां दुर्गा की आराधना के लिए नौ दिनों तक चलता है। इस त्योहार के दौरान, भक्त नौ दिनों तक उपवास रखते हैं और ध्यान, पूजा, और भक्ति के माध्यम से मां दुर्गा की आराधना करते हैं। हर दिन को एक विशेष रूप की पूजा के साथ मनाया जाता है, और हर दिन के साथ एक विशेष मां दुर्गा के गुण और महत्व का विचार किया जाता है।

सप्तमी दिन, जो नवरात्रि के सातवें दिन का होता है, विशेष रूप से मां कालरात्रि की पूजा के रूप में मनाया जाता है। मां कालरात्रि का रूप विशेष रूप से भयंकर और उग्र होता है, और उनकी पूजा भक्तों को डर से मुक्ति और साहस प्रदान करती है।

मां कालरात्रि का रूप:

मां कालरात्रि का रूप विशेष रूप से भयंकर और उग्र होता है। वह काली रंग की होती हैं और उनके चेहरे पर विक्षिप्त दृष्टि होती है। मां कालरात्रि महाकाल की पत्नी हैं और उनकी धारणा में तांडव नृत्य और उग्र रूप दिखाते हैं। उनके हाथ में तालवार होती है और वे भयानक भगवती के रूप में प्रसिद्ध हैं।

मां कालरात्रि के दर्शन करने से डर का दूर होता है और व्यक्ति अपने जीवन में साफलता, सुख, और समृद्धि प्राप्त करते हैं और सभी मुश्किलों को पार करते हैं।

सप्तमी का महत्व:

सप्तमी के दिन का महत्व विशेष रूप से होता है क्योंकि इस दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है, जिसका महत्व बहुत अधिक होता है। मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्त अपने जीवन में सफलता, सुख, और समृद्धि प्राप्त करते हैं और सभी मुश्किलों को पार करते हैं।

इस दिन भक्त अपने जीवन में डर को परास्त करने की शक्ति प्राप्त करते हैं और नए आरंभों के लिए उत्साहित होते हैं। मां कालरात्रि की पूजा का आयोजन विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक माहौल में किया जाता है, और भक्त उपवास के साथ मां कालरात्रि की आराधना करते हैं।

Navratri के सप्तमी दिन की आराधना:

सप्तमी के दिन, भक्त मां कालरात्रि की पूजा करने के लिए तैयारी करते हैं। इसके लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:

  1. मां कालरात्रि की मूर्ति या प्रतिमा: पूजा की शुरुआत मां कालरात्रि की मूर्ति या प्रतिमा की स्थापना के साथ होती है। भक्त इस मूर्ति को अपने पूजा स्थल पर स्थापित करते हैं और उनकी आराधना करते हैं।
  2. दीपक: दीपक मां कालरात्रि की पूजा के लिए आवश्यक होता है। भक्त दीपक को जलाकर मां कालरात्रि की पूजा करते हैं और उन्हें प्रदीप्त करने का अर्पण करते हैं।
  3. दूप और अगरबत्ती: दूप और अगरबत्ती भी पूजा के दौरान उपयोग किए जाते हैं। इसके माध्यम से भक्त पूजा के स्थल को शुद्धि देते हैं और आत्मा को शांति प्राप्त होती है।
  4. फूल: फूलों की माला या एकवचन भी मां कालरात्रि की पूजा के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। भक्त इन्हें मां कालरात्रि की पूजा के लिए उपयोग करते हैं और उनकी आराधना करते हैं।
  5. जल: पूजा के लिए जल की भेंट भक्तों के द्वारा की जाती है। यह पवित्र जल होता है और पूजा के दौरान अर्पण किया जाता है।
  6. फल: कई प्रकार के फल भी पूजा के लिए उपयोग किए जाते हैं, और इन्हें मां कालरात्रि को अर्पण किया जाता है।

सप्तमी की पूजा विधि:

सप्तमी के दिन की पूजा का आयोजन निम्नलिखित विधि से किया जाता है:

  1. मां कालरात्रि की मूर्ति का स्थापना: पूजा की शुरुआत मां कालरात्रि की मूर्ति या प्रतिमा की स्थापना के साथ होती है। मूर्ति को पूजा स्थल पर सजाकर स्थापित किया जाता है।
  2. शुद्धि क्रिया: पूजा की शुरुआत में भक्त अपने शरीर और मन की शुद्धि करते हैं। इसके लिए वे हाथ धोते हैं और शुद्ध वस्त्र पहनते हैं।
  3. पूजा के लिए सामग्री की आयोजन: भक्त पूजा के लिए आवश्यक सामग्री की आयोजन करते हैं, जैसे कि दीपक, दूप, अगरबत्ती, फूल, फल, दाल-चावल, मिश्रित दना, और जल।
  4. पूजा का आरंभ: पूजा की शुरुआत मां कालरात्रि की मूर्ति के सामने किया जाता है। भक्त दीपक को जलाते हैं और दूप और अगरबत्ती का आर्पण करते हैं।
  5. पूजा के मंत्र:
  • “ॐ देवी कालरात्र्यै नमः।”
  • “ॐ श्री कालरात्र्यै नमः।” इन मंत्रों का जाप करते हुए भक्त पूजा करते हैं और मां कालरात्रि की कृपा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
  1. फल और दान: भक्त फल और दान का आर्पण करते हैं, और इसके साथ ही वे मिश्रित दना की थाली का भोग करते हैं।
  1. आरती: पूजा के अंत में आरती गाई जाती है, और मां कालरात्रि की मूर्ति की आरती की जाती है। आरती गाने से पूजा का समापन होता है और भक्त आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

मां कालरात्रि की महिमा:

मां कालरात्रि की कहानी और महिमा विशेष रूप से इस दिन के महत्व को अधिक बढ़ा देती है। मां कालरात्रि का नाम ‘काल’ और ‘रात्रि’ से आया है, जिसका अर्थ होता है ‘काल’ या ‘समय’ की रात्रि। इसका अर्थ होता है कि मां कालरात्रि विश्व के काल और अग्र की रात्रि हैं, और वे सब प्रकार के डर और अंधकार को दूर करने की शक्ति हैं।

मां कालरात्रि की मूर्ति कालरात्रि देवी के दरबार में स्थित होती है, और वे एक हाथ में छड़ी और दूसरे हाथ में तालवार धारण करती हैं। उनके चेहरे पर भयानक रूप होता है, और उनके आँखों की दृष्टि भक्तों के लिए कुफ़ल और दुख को दूर करने की शक्ति का प्रतीक होती है।

मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों का डर दूर होता है और वे अपने जीवन में साफलता, सुख, और समृद्धि प्राप्त करते हैं। उन्हें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए साहस और उत्साह प्राप्त होता है, और वे मां कालरात्रि की कृपा के साथ अपने जीवन के सभी कठिनाइयों को पार करते हैं।

सप्तमी दिन के महत्व का संक्षिप्त अर्थ:

सप्तमी दिन के महत्व को संक्षिप्त रूप से समझने के लिए यह बताया जा सकता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से हम अपने जीवन में आनेवाले समय की रात्रि के डर से मुक्त होते हैं और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए साहसिक होते हैं। इस दिन की पूजा से हमें आत्म-समर्पण और ध्यान की महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है और हम अपने आप को मां दुर्गा की आराधना में समर्पित करते हैं।

सप्तमी दिन के महत्व को समझने से हमें समाज में डर को परास्त करने की शक्ति मिलती है और हम सफलता, सुख, और समृद्धि प्राप्त करने के लिए उत्साहित होते हैं। इस दिन के महत्व को यथासंभाव जीवन में अपनाकर हम समय की रात्रि के डर से मुक्त होते हैं और आत्मा को शांति और सफलता की ओर अग्रसर करते हैं।

इस तरह से, सप्तमी के दिन का महत्व और पूजा का विवरण हमें अपने आध्यात्मिक और धार्मिक जीवन में सहयोग करता है और हमें मां कालरात्रि की आराधना के माध्यम से डर को परास्त करने और नए आरंभों के लिए उत्साहित करता है।

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