Chhath Puja Kab hai 2023 Mein जानिये मुहुर्त, महत्व, विधि, कहानी

छठ पूजा (Chhath Puja) एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है यह पूजा सूर्य देवता की पूजा होती है और इसे छठी माँ के रूप में जाना जाता है। छठ पूजा अक्टूबर और नवम्बर महीने के बीच मनाई जाती है।

यहां छठ पूजा के महत्वपूर्ण विवरण हैं:

1. तारीख़ और दिनांक: छठ पूजा का त्योहार छठी तिथि को मनाया जाता है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि होती है। यह पूजा पांच दिनों तक चलती है, जिसमें पहले दिन व्रत रखा जाता है और फिर चौथा दिन सूर्योदय के समय आराधना की जाती है।

2. उद्देश्य: छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य होता है सूर्य देवता का आभार और प्रसन्नता प्रकट करना। लोग सूर्य देव की कृपा और आशीर्वाद के लिए पूजा करते हैं।

3. पूजा की विधि: छठ पूजा के दौरान, व्रत रखने वाले लोग सबेरे उठकर नदी किनारे जाते हैं और सूर्योदय के समय सूर्य देव की पूजा करते हैं। इसमें गायन, व्रत खाने की आपसी प्रक्रिया, और धूप-दीप आराधना शामिल होती हैं।

4. परंपरागत भोजन: छठ पूजा के दौरान, व्रती विशेष प्रकार के व्रत भोजन का तैयारी करते हैं, जिसमें चावल, दल, गुड़, और लोकल खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं। इस भोजन को व्रती बच्चे और बड़े सभी खाते हैं।

5. धार्मिक महत्व: छठ पूजा हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है, और यह लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है जो सूर्य देवता की पूजा करता है और सूर्य के असीम ऊर्जा का आभास कराता है।

6. पर्व की आकर्षकता: छठ पूजा का उत्सव विशेष रूप से बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, और नदियों के किनारों पर, खुले जगहों पर, और मंदिरों में धूमधाम से आयोजित होता है।

Chhath Puja kab hai 2023 Mein

इस साल छठ पूजा 17 नवंबर 2023 से शुरू होकर 20 नवंबर 2023 को समाप्त होगी.

Chhath puja 2023 date in Bihar

इस साल बिहार मैं छठ पूजा 17 नवंबर 2023 से शुरू होकर 20 नवंबर 2023 को समाप्त होगी.

Chhath Puja kab se Start hai 2023 Mein

  • 17 नवंबर 2023: – नहाय खाए
  • 18 नवंबर 2023खरना
  • 19 नवंबर 2023डूबते सूर्य को अर्घ्य
  • 20 नवंबर 2023उगते सूर्य को अर्घ्य

Chhath Puja Muhurat Time 2023

इस साल छठ पूजा के सही समय की बात करें तो सूर्यास्त के समय अर्घ्य देने का सबसे अच्छा समय शाम 5:26 PM होगा और सूर्योदय के समय अर्घ्य देने का सबसे अच्छा समय सुबह 6:47 AM होगा।

Chhath puja ka Mahatva kya hai 2023

छठ पूजा (Chhath Puja) का महत्व हिन्दू धर्म में बहुत ऊंचा है, और यह पूजा मुख्य रूप से उत्तर भारत, विशेषकर बिहार, झारखंड, और पश्चिम बंगाल में मनाई जाती है। छठ पूजा का महत्व विभिन्न कारणों से होता है, जिनमें निम्नलिखित है:

  1. सूर्य देव की पूजा: छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य होता है सूर्य देव की पूजा करना और उनका आभार जताना। सूर्य देव के प्रकाशमयी ऊर्जा का ध्यान रखना हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है, और छठ पूजा इसका एक महत्वपूर्ण प्रतीक है।
  2. प्राकृतिक तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका: छठ पूजा का आयोजन नदियों के किनारों पर होता है, जिससे प्राकृतिक तत्वों के महत्व का संकेत मिलता है। इसमें सूर्य, पानी, और पृथ्वी के प्राकृतिक तत्वों की पूजा होती है.
  3. धार्मिक सांस्कृतिक सामर्थ्य: छठ पूजा लोगों के धार्मिक और सांस्कृतिक सामर्थ्य को प्रमोट करती है। इसमें व्रत रखना, धूप-दीप, गीत-संगीत, और अपने परिवार के साथ समय बिताने की प्रक्रिया शामिल होती है, जिससे सामर्थ्य और परंपरा का महत्व बढ़ता है।
  4. स्वास्थ्य और आरोग्य का महत्व: छठ पूजा का व्रत लोगों के लिए स्वास्थ्य और आरोग्य के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। इसके दौरान व्रती लोग सात्विक आहार खाते हैं और सूर्य की प्राण शक्ति के साथ ध्यान रखते हैं, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुधरता है।
  5. आध्यात्मिक सांबंधिकता: छठ पूजा आध्यात्मिक अनुभव को बढ़ावा देती है और लोगों को अपने आध्यात्मिक दृष्टिकोण को मजबूत करने में मदद करती है।

इस तरह, छठ पूजा एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जो सूर्य देव की पूजा और प्राकृतिक तत्वों के महत्व को समझाने का माध्यम होता है, और यह समृद्धि, सामर्थ्य, और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।

Chhath puja Vidhi

छठ पूजा का आयोजन विशेष आदिवासी और उत्तर भारत के कई राज्यों में किया जाता है और यह पूजा चार दिनों तक चलती है। नीचे छठ पूजा की प्रमुख विधियों का वर्णन किया गया है:

पहला दिन – नहाय खाय:

  1. पहले दिन को छठ पूजा का आगाज़ किया जाता है।
  2. सुबह जागकर व्रती व्यक्ति को स्नान करना होता है, उसके बाद शौचालय जाना और पानी के संपर्क से बचना होता है।
  3. व्रती को इस दिन केला और खरबूजा के साथ आलू की सब्जी का भोजन करना होता है, जिसे “कड़ा” कहा जाता है।
  4. सूर्योदय के समय, व्रती व्यक्ति और उनके परिवार के सदस्य नदी या झील के किनारे जाते हैं और सूर्य देवता का पूजन करते हैं।

दूसरा दिन – खारया खाय:

  1. इस दिन, व्रती को अपने अनुष्ठान के साथ ही नदी या झील के किनारे पहुंचना होता है।
  2. यहां व्रती को “खारया” कहा जाता है, और वह अपने परिवार के साथ एक विशेष भोजन का आयोजन करते हैं, जिसमें चावल, दलिया, और गुड़ की खीर शामिल होती है।

तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य:

  1. तीसरे दिन, व्रती व्यक्ति दोपहर के आसपास नदी या झील के किनारे पहुंचते हैं।
  2. इस दिन को “संध्या अर्घ्य” कहा जाता है, और व्रती व्यक्ति सूर्यास्त के समय सूर्य देवता का पूजन करते हैं और अर्घ्य देते हैं।

चौथा दिन – परणा:

  1. चौथे दिन को “परणा” कहा जाता है, और इस दिन को सूर्योदय के समय पूजा और व्रत का अंत होता है।
  2. व्रती व्यक्ति और उनके परिवार के सदस्य फिर से नदी या झील के किनारे जाते हैं और सूर्य देवता का पूजन करते हैं, इस बार छठी माँ की पूजा के साथ।
  3. पूजा के बाद, व्रती व्यक्ति अपने व्रत को तोड़ते हैं और किसी आपातकाल के लिए सूर्य देवता से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

छठ पूजा का आयोजन विशेष धार्मिक और सामाजिक महत्व रखता है, और यह पूरे परिवार के साथ उत्सव का माहौल बनाता है। यह पूजा सूर्य देव की पूजा और प्राकृतिक तत्वों के महत्व को समझाने का माध्यम होती है और लोगों को धार्मिक और सामाजिक सामर्थ्य का मानना करती है।

Chhath Mata ki Kahani

“छठ पूजा” के माध्यम से मां छठ की महत्वपूर्ण कहानी है, जो हिन्दू पौराणिक कथाओं में मिलती है। यह कहानी मां छठ की महिमा और उनके भक्त की भक्ति की महत्वपूर्ण कथा है।

कहानी के अनुसार, एक समय की बात है जब काशीपुर नामक नगर में एक ब्राह्मण कुल में एक सुंदर कन्या हुई। उसके पिता का नाम काशीराज था और उसका नाम मालीनी था। मालीनी बचपन से ही पवित्रता की भक्त थी और वह बचपन से ही सूर्य देव की भक्ति करती रही।

एक दिन, मालीनी की माता ने उसे अपने साथ किनारे पर जाने के लिए कहा, जहां वह अपने पूजा-अर्चना कर सकती थी। मालीनी वहां गई और सूर्य देव की पूजा करने लगी। वह व्रत की उपयुक्त धारणा करके और सही तरीके से पूजा करके यह प्राप्त करने के लिए तैयार हो गई कि वह एक दिन सूर्य देव की पत्नी बनेगी।

जब सूर्य देव ने अपने ग्रहण समय में उसे देखा, वह बहुत ही आकर्षित हुए और उससे विवाह के लिए प्रार्थना की। मालीनी ने सूर्य देव की प्रार्थना स्वीकार की और वे विवाह के बाद खुशियों के साथ वापस काशीपुर लौटे।

इस तरह, मालीनी ने अपने पवित्र व्रत और सूर्य देव की पूजा की भक्ति के बल पर सूर्य देव की पत्नी बनी, और छठ पूजा का पालन करने वाली मां छठ के रूप में मानी गई। इसलिए छठ पूजा में मां छठ की पूजा की जाती है, जिसका महत्व छठ पूजा के त्योहार में उजागर होता है। छठ पूजा मां छठ की पूजा, सूर्य देव की पूजा, और प्राकृतिक तत्वों के महत्व का प्रतीक है।

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