गोवर्धन पूजा, भारतीय हिन्दू पर्वों में से एक है, जो कर्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और गोवर्धन पर्वत के पूजन से संबंधित है। इसे गोवर्धन पूजा या गोवर्धन पर्व भी कहते हैं। इस पर्व का महत्व भगवान कृष्ण के अद्भुत लीला के साथ जुड़ा हुआ है।
गोवर्धन पूजा के मुख्य आयोजन:
- गोवर्धन पूजा की तैयारियां: पूजा की तैयारियां पूर्वदिन ही शुरू हो जाती हैं। लोग अपने घरों को सजाने-सवरने और सफाई करने में लगते हैं।
- गोवर्धन पर्वत की पूजा: पूजा के दिन, एक छोटे से पर्वत का रूप बनाया जाता है, जिसे गोवर्धन पर्वत का प्रतीक मानकर पूजा जाता है। इस पर्वत को गोवर्धन सिंहासन के रूप में सजाया जाता है और भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति उस पर रखी जाती है।
- अन्न की प्रधाना: गोवर्धन पूजा में अन्न की दान कार्यक्रम भी होता है। लोग अन्न, फल, मिठाई, दही, घी, आदि की प्रधाना करते हैं और इसे पूजा के बाद ब्राह्मणों और गरीबों को देते हैं।
- पूजा और आरती: गोवर्धन पूजा के दौरान भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और आरती की जाती है। पूजा के मंत्र पढ़े जाते हैं और गोवर्धन पर्वत की आरती भी उतारी जाती है।
- गोवर्धन पर्व कथा: गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण की लीलाओं की कथा सुनी जाती है, जिसमें उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोपों की सुरक्षा की थी।
- गोवर्धन पर्व के बाद: पूजा के बाद, गोवर्धन पर्वत का प्रतिस्थापन किया जाता है और पूजा में प्रयुक्त अन्न को ब्राह्मणों और गरीबों को बांटा जाता है।
गोवर्धन पूजा हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है और यह पर्व परिवार के साथ मिलकर मनाने का अच्छा अवसर होता है। यह पर्व भक्तों के द्वारा भगवान कृष्ण के आदर्शों का पालन करने का एक माध्यम भी होता है।
Govardhan Puja Kab Hai 2023 Mein
इस साल गोवर्धन पूजा 14 नवंबर 2023 को मनाई जायेगी।
Goverdhan Puja kyo mana tha hai
गोवर्धन पूजा को विभिन्न कारणों से मनाया जाता है, और इसका महत्व हिन्दू धर्म में विशेष रूप से माना जाता है। यहां कुछ मुख्य कारण हैं जिनके चलते गोवर्धन पूजा मनाई जाती है:
- भगवान श्रीकृष्ण की लीला: गोवर्धन पूजा का प्रमुख कारण भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के साथ जुड़ा हुआ है। इस पूजा के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ में उठाया था, जिससे गोपों और गोपियों की सुरक्षा की गई थी। इस लीला का स्मरण करने के लिए गोवर्धन पूजा मनाई जाती है।
- गौ-भक्ति: इस पर्व के दिन गौ माता (गाय) की पूजा भी की जाती है। गौ माता को माना जाता है कि वह लक्ष्मी, कामधेनु, और सरस्वती का स्वरूप होती है, और इसलिए उनकी पूजा धन, संपत्ति, और ज्ञान के प्राप्ति में मदद करती है।
- समाजिक सहयोग: गोवर्धन पूजा के दिन, लोग अपने समाज के गरीब और ब्राह्मणों की मदद करते हैं और अन्न, धन, और औषधियों की दान करते हैं। इससे समाज में सहयोग और दान की भावना बढ़ती है।
- प्राकृतिक संरक्षण: गोवर्धन पूजा के दिन, लोग प्राकृतिक संरक्षण का भी संकेत करते हैं। गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाने के लिए मिट्टी का उपयोग होता है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग होता है और पर्यावरण का संरक्षण किया जाता है।
- सामाजिक एकता: गोवर्धन पर्व के दिन लोग अपने परिवारों और समुदाय के सदस्यों के साथ मिलकर पूजा करते हैं, जिससे सामाजिक एकता और संगठन की भावना बढ़ती है।
इस प्रकार, गोवर्धन पूजा का महत्व हिन्दू समाज में विशेष रूप से उन कारणों के कारण है जो इसे मनाने के पीछे हैं, जो धार्मिक, सामाजिक, और पार्यावरणिक हैं।
Goverdhan Puja vidhi
गोवर्धन पूजा की विधि के रूप में निम्नलिखित कदम शामिल हो सकते हैं:
सामग्री:
- गोवर्धन पर्वत का बनाया गया प्रतिमा या चित्र
- गोवर्धन पूजा के लिए अन्न (चावल, दाल, रोटी, घी, दही, मिठाई, फल, आदि)
- पूजा के लिए पुष्प, दीपक, अगरबत्ती, रुप्या, दक्षिणा, और नौकरी के वस्त्र
- पूजा के लिए कलश, कलश स्थापना के लिए जल, और पुष्प
पूजा की विधि:
- तैयारी: पूजा की तैयारी के लिए सामग्री को एक पूजा स्थल पर तैयार करें। गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
- कलश स्थापना: पूजा की शुरुआत में कलश स्थापना करें। कलश को पानी से भरकर उसके मुख पर कलिश पूजा का संकेत बनाएं।
- गोवर्धन पूजा: गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा या चित्र को पुष्प, दीपक, और अगरबत्ती सहित पूजें। अन्न की प्रधाना करें और भगवान श्रीकृष्ण की आरती उतारें।
- गौ पूजा: गौ माता को पूजन करें। उसे घास, दाना, और जल पिलाएं। गौ माता की सेवा करने से धन, संपत्ति, और शुभकामनाएं प्राप्त होती हैं।
- अन्न की दान: पूजा के बाद, गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा के चारों ओर अन्न की दान करें। इस अन्न को ब्राह्मणों और गरीबों को बांट दें।
- पूजा का समापन: अंत में भगवान कृष्ण की आरती उतारें और पूजा का समापन करें।
इस रूप में, गोवर्धन पूजा का आयोजन किया जा सकता है। पूजा के दौरान भक्तों को भगवान कृष्ण की महिमा और गौ माता की महत्वपूर्ण भूमिका का स्मरण करना चाहिए।
गोवर्धन पूजा के दिन गाय ki puja kyon ki jaati hai 2023
गोवर्धन पूजा के दिन गौ माता (गाय) की पूजा करने का मुख्य कारण है कि गौ माता को हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है और उन्हें मातृभावना के साथ पूजा जाता है। गौ माता को सगुण देवता की तरह माना जाता है और उन्हें विभिन्न प्राकृतिक और धार्मिक गुणों के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।
इसके अलावा, गोवर्धन पूजा के दिन गौ माता की पूजा करने का और एक कारण है:
- गौ माता के महत्व का प्रतीक: गौ माता को माना जाता है कि वह लक्ष्मी, कामधेनु, और सरस्वती का स्वरूप होती है। इसलिए गौ माता की पूजा धन, संपत्ति, और ज्ञान के प्राप्ति में मदद करती है। इस पूजा के दिन गौ माता की सेवा करके लोग धन, संपत्ति, और ज्ञान की प्राप्ति की कामना करते हैं।
- गौ सेवा का महत्व: गौ माता की सेवा हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण मानी जाती है। गौ सेवा करने से कर्मफल की प्राप्ति का अच्छा अवसर मिलता है और पुण्य का अधिकार बनता है। इसलिए गोवर्धन पूजा के दिन गौ माता की पूजा करने से धार्मिक और कर्मयोगी गुण की उन्नति होती है.
- प्राकृतिक संरक्षण: गोवर्धन पूजा के दिन, गौ माता को संरक्षण और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। गौ माता की सुरक्षा के लिए लोग अपनी संवेदना और जिम्मेदारी का प्रतीक देते हैं और उन्हें सही से देखभाल करते हैं।
इसलिए, गोवर्धन पूजा के दिन गौ माता की पूजा करने से हिन्दू समाज में गौ सेवा का महत्व और प्राकृतिक संरक्षण का संदेश दिया जाता है।
भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को कितने दिनों तक उठाये रखा था ?
भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ में उठाया रखा था चार दिन और चार रात तक। इस घटना का वर्णन महाभारत में भी मिलता है और यह एक महत्वपूर्ण लीला है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल ग्राम के लोगों की सुरक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को उठाया था। इस लीला का उद्देश्य गोपों के प्रेम और भक्ति को प्रकट करना था, और इसके साथ ही प्राकृतिक संरक्षण के महत्व को भी संकेत करना था।
गोवर्धन पर्वत को 56 भोग क्यों लगाया जाता है
गोवर्धन पर्वत को 56 भोग इसलिए लगाए जाते हैं क्योंकि इसमें भगवान श्रीकृष्ण की विशेष लीला से संबंधित हैं। यह लीला गोवर्धन पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके पीछे निम्नलिखित कुछ मुख्य कारण हैं:
- गोवर्धन पर्वत की लीला: भगवान श्रीकृष्ण के बचपन में, गोकुल ग्राम के लोग नेत्रोत्सव के दिन गोवर्धन पर्वत को पूजा करने निकले थे। श्रीकृष्ण ने इस मौके पर गोवर्धन पर्वत को अपने दोनों हाथों में उठाया और उसे छत्र की तरह गोकुल के लोगों की सुरक्षा के लिए बना दिया। इसके परिणामस्वरूप, गिरिराज गोवर्धन को वर्षों तक पूजा जाता आया है, और 56 भोग इस पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं।
- भगवान कृष्ण के अद्भुत लीलाएँ: गोवर्धन पर्वत के चार दिन और चार रात तक भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज गोवर्धन को अपने हाथ में उठाया रखा था और गोकुल के लोगों की सुरक्षा की थी। इस घटना के सम्बंध में अनेक अद्भुत लीलाएं हुईं थीं, और 56 भोग इस लीला की स्मृति के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं।
- भक्ति और सेवा: गोवर्धन पर्वत को 56 भोग की पूजा करके, भक्तों को भगवान कृष्ण की लीलाओं को स्मरण करने और उनकी भक्ति में भागीदारी करने का अवसर मिलता है। यह पूजा भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और सेवा की भावना को बढ़ावा देती है।
इसलिए, 56 भोग की पूजा गोवर्धन पर्व के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मनाई जाती है और भगवान कृष्ण की विशेष लीला को स्मरण करती है।